ज की पावन भूमि पर कभी यमुना किनारे लता-पताओं के बीच राधाकृष्ण ने लीलाएं की थीं। इस भूमि को यहां आए आचार्यों ने यह सोचकर अपनी आराधना स्थली बनाया कि ये वन-उपवन और लता-पताएं ही ठाकुर जी की लीलाओं के साक्षी हैं। जो उन्हें राधाकृष्ण के दर्शन कराएंगे, लेकिन अब इन्हीं लता-पताओं के अस्तित्व पर संकट छाया है। हम बात कर रहे हैं वृंदावन की, जहां अब न वृंदा (तुलसी) रही और न ही वन।
ये कैसा वृंदावन, जहां न वृंदा रही और न वन